Swarnshila Rasayan Capsule
Swarnshila Rasayan Capsule
Brand : | Sanatan Ayurvedashram |
Product Code : | SWC |
Availability : | In Stock |
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₹600.00
- Ex Tax : ₹600.00
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Swarnshila Rasayan Capsule is made from valuable and highly effective Ayurvedic Herbs and Minerals that have been referenced in Ayurveda for rejuvenate the body, mind and soul.
स्वर्णभस्मः- आयुर्वेदीय ग्रंथों में स्वर्णभस्म के गुणधर्मों का विवेचन विस्तार से करके कहा गया है कि स्वर्णभस्म प्रज्ञा, वीर्य, स्मृति, कांति और ओज को बढ़ाने वाली है। यह क्षय, धातुक्षीणता, मस्तिष्क की दुर्बलता, नपुंसकता में उपकारी है। कहा गया है कि जिस प्रकार सामाजिक जीवन में स्वर्ण को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, उसी प्रकार इसकी भस्म शारीरिक व्याधि दूर करने में बहुत महत्व रखती है।
आधुनिक शोधों में भी स्वर्ण भस्म को बहुत उपयोगी माना गया है। सुवर्ण रोगप्रतिरोधक शक्तिवर्धक होता है। इसके अलावा इसे बल्य, यकृतबल्य, नाड़ीबल्य, हृदयोत्तेजक, वाजीकारक, विषध्न, जीवाणुनाषक और रसायन कहा गया है।
मकरध्वजः- यह हृदयपौष्टिक, वाजीकारक, बल्य, रसायन, रक्तप्रसादक, जतुघ्न, सेन्द्रीय विषनाषक और योगवाही होता है। इसमें कामोद्दीपक गुण भी होते हैं। इसके सेवन से पाचन अग्नि और वीर्य बढ़ता है। किन्हीं कारणों से उत्पन्न इन्द्रिय षिथिलता दूर होती है। शुक्र जनन, शुक्रस्तंभक एवं शुक्रस्त्रावक कार्य मकरध्वज के सेवन से होते हैं।
मुक्तापिष्टीः- मोती को संस्कृत में मुक्ता कहा गया है। यह सामाजिक जीवन में मूल्यवान द्रव्य के रूप में प्रसिद्ध है। हमारे आयुर्वेदाचार्यों ने मोती में औषधीय प्रभावों का गहराई से अध्ययन करके पाया है कि मुक्ता शीतवीर्य होता है तथा इससे शास्त्रोक्त विधि से बनाई पिष्टी में यह गुण प्रभावी रूप में पाया जाता है।
मुक्तापिष्टी के बार में कहा गया है कि यह जीर्णज्वर, रक्तपित्त, मस्तिष्क दौर्बल्य, सिरदर्द, पित्त की वृद्धि, दाह, प्रमेह और मूत्रकृच्छ्र आदि को दूर करती है। इसके सेवन से पित्त की तीव्रता और अम्लता कम होती है। नेत्र ज्योति बढ़ाती है। अनिद्रा रोग में यह यथेष्ट लाभ दर्षाती है।
अधिक चाय, मद्यपान या धूम्रपान से जब दिमागी विकृति होती है, तब मुक्तापिष्टी का सेवन उपयोगी रहता है।
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि मुक्तापिष्टी क्षयरोग, अन्तर्दाह, अनुलोमक्षय, नेत्ररोग, अनिद्रा के अलावा अन्य पैत्तिक विकारों में फलदायी रहती है।
स्वर्ण वंगः- यह शीतवीर्य, शीत गुणयुक्त होता है। यह सम्पूर्ण शरीर को बल देता है। यह प्रमेहनाषक, मेधाषक्ति विकासक नेत्रों के लिए लाभकारी है। इसके सेवन से शारीरिक कांति बढती है और भूख बढ़ती है। इससे मेदो विकार दूर होते हैं तथा शुक्रधातु की उत्पत्ति होती है। उत्पादक अंगों के लिए यह उत्तम बल्य (वृष्य) है।
स्वर्णवंग का विषेष प्रभाव शुक्रस्थान, मूत्रपिण्ड और वीर्यवाहिनियों पर होता है। वीर्य को पुष्ट कर शरीर को बलवान बनाता है।
स्त्रियों के विभिन्न रोग यथा सोम रोग, अस्थिस्त्राव तथा श्वेतप्रदर जन्य क्षय में भी यह उपयोगी बताया गया है।
वृहतवंगेष्वरः- इस औषधि के बारे में भैषज्य रत्नावली में कहा गया है कि यह बीस प्रकार के साध्य तथा असाध्य प्रमेह, मूत्र का कठिनाई से निकलना, पीलिया तथा इस रोग की बिगड़ी हुई अवस्था जिसे आयुर्वेद में हलीमक नाम से जानते हैं, के साथ ही धातुगत ज्वर, रक्तपित्त, वात, पित्त तथा कफ के प्रकोप से उत्पन्न रोग, ग्रहणी के विकार, आमदोष, मन्दाग्नि (जिसमें पाचन शक्ति कमजोर हो जाती हैं) तथा अरूचि आदि सभी रोगों को नष्ट करता है।
स्वर्णषिला रसायन कैपसूल में उक्त औषधियों के अलावा जायफल, आंवला, कौंच बीज, असगंध, शतावरी, रसोंत के घनसत्व तथा गिलोय सत्व और षिलाजीत का सुन्दर संयोजन किया गया है। ये सभी द्रव्य शरीर की आन्तरिक षक्ति का विकास करते है तथा विभिन्न रोग निवारक हैं साथ ही रोग प्रतिरोधक षक्ति का विकास करते हैं।
उक्त घटक द्रव्यों के संयोजन से तैयार स्वर्णषिला रसायन कैपसूल के गुणधर्म इस प्रकार कहे जा सकते हैं।
स्वर्णषिला रसायन कैपसूल एक उत्तम रसायन औषधि है। इसके सेवन से शारीरिक, मानसिक दौर्बल्यता दूर होती है। यह वयस्क स्त्री-पुरूष दोनों को लाभकर है।
स्वर्णषिला रसायन कैपसूल में उक्त औषधियों के अलावा जायफल, आंवला, कौंच बीज, असगंध, शतावरी, रसोंत के घनसत्व तथा गिलोय सत्व और षिलाजीत का सुन्दर संयोजन किया गया है। ये सभी द्रव्य शरीर की आन्तरिक षक्ति का विकास करते है तथा विभिन्न रोग निवारक हैं साथ ही रोग प्रतिरोधक षक्ति का विकास करते हैं।
उक्त घटक द्रव्यों के संयोजन से तैयार स्वर्णषिला रसायन कैपसूल के गुणधर्म इस प्रकार कहे जा सकते हैं।
स्वर्णषिला रसायन कैपसूल एक उत्तम रसायन औषधि है। इसके सेवन से शारीरिक, मानसिक दौर्बल्यता दूर होती है। यह वयस्क स्त्री-पुरूष दोनों को लाभकर है।
एक-एक कैपसूल दिन में एक या दो बार दूध से अथवा चिकित्सक के परामर्षानुसार।
पथ्यापथ्यः- सुपाच्य एवं पौष्टिक आहार का सेवन करें। भोजन में अनियमितता न रखें। कब्जकारक भोजन न करें। मन को प्रसन्न रखें। क्रोध, तनाव आदि मानसिक विकारों से बचें। कब्ज से बचाव रखें। धूम्रपान, मद्यपान का त्याग करें।